gustaakh kabootar

सोमवार, 24 अक्तूबर 2016

पहली मुलाकात


                    बात सन् 2002 की है , जब पापा हमें जयपुर घुमाने ले गए थे। पहली बार इतना बड़ा शहर देखा था , पहली बार तांगे पर बैठे थे , तांगे वाले ने घुमा फिरा कर हमें रामनिवास उद्यान के सामने ला खड़ा किया। सब रोमांचित थे , पापा हमें चिड़ियाघर लेकर आये थे। हमारी टिकट नहीं लगी थी क्योंकि पापा उस वक़्त वन विभाग में jr. Accountant थे। हमारे अंदर कदम रखते ही एक जोरदार दहाड़ से हमारा स्वागत हुआ , सबके चेहरे मारे रोमांच के लाल पड़ गए थे , चेहरे पर अधूरी मुस्कराहट लिए मैनें मम्मी से पूछा "ये कौन बोल रहा है मम्मी ?"
"शेर बोल रहा है बेटा" मम्मी ने मुस्कुरा कर जवाब दिया।
"बेटा ये tiger की दहाड़ है" वहां खड़े एक आदमी ने कहा जो मुझे देखकर मुस्कुरा रहा था।
"Tiger मतलब बाघ " मैंने मन में सोचा और वही किताबों वाले चित्र मेरी आँखों के सामने घूमने लगे। धीरे धीरे हम आगे बढ़े और सभी जानवरों को मैं पुरे उत्साह से देख रहा था क्योंकि वहां मौजूद जानवरों में से मैंने सिर्फ बंदर ही देख रखे थे । सभी मेरे लिए नए थे पर मुझे tiger देखने की बहुत जल्दी थी , मैं हर दूसरे पिंजरे पर पापा से पूछता था "पापा tiger कहाँ है??"
और पापा भी हर परेशान पिता की तरह कहते थे "आएगा आएगा"। मैं अधीर हो रहा था , पहली दहाड़ की गूँज अब तक मेरे कानों में थी। मैंने मम्मी से हाथ छुड़वाया धीरे से और तेज़ी से हर पिंजरे की तालाशी लेने लगा। छोटे पिंजरे ख़त्म हो गए। एक बहुत बड़ा मैदान आया , चारों और लोहे की जाली की मजबूत दीवार । मैंने अंदर देखा वो पेड़ की छाया में सो रहा था । मैं पहचान गया , वो शेर था , बब्बर शेर। मैंने उसे परेशान नहीं किया और आगे निकल गया। कुछ दूर चलने पर घने पेड़ो का झुण्ड नज़र आया और उसके  चारों और गोलाई में बना एक तालाब था , उस तालाब में किसी जानवर की कटी टाँग  जैसा कुछ तैर रहा था , डरावना सन्नाटा था , पेड़ों पर पंछी भी बहुत कम थे और जितने भी थे , चुप थे । तभी मैने देखा की तालाब के बीचोंबीच पेड़ के नीचे किसी जानवर की कटी फटी लाश पड़ी थी , वो इस तरह से थी कि कहना मुश्किल था की ये कौन जानवर रहा होगा। तालाब के चारों ओर लगी लोहे की जालियां पकड़े मैं इसी पहेली को सुलझाने में लगा था कि मुझे एक हल्की गुर्राहट सुनाई दी । मैंने उस तरफ देखा तो जाली पर से मेरे हाथ खुदबख़ुद हट गए और मैं जाली से हट कर सीधा खड़ा हो गया। बाघ तालाब में था और मुझे घूर रहा था और मेरी आँखें भी न जाने क्यूँ उस पर से नहीं हटीं , उसकी आँखों की पुतलियाँ फ़ैल सिकुड़ रही थी । उसके मुँह में वो टाँग थी जो कुछ seconds पहले मैंने तालाब में तैरती देखी थी। मैं उसे देखता ही रहा बिना हिले और फिर...वो हल्का गुर्राया । मुझे डरा कर भगाने के लिए उसे दहाड़ खर्च करने की जरुरत ही कहाँ थी.....मैंने मारे डर के भागना शुरू कर दिया और तब तक भागता रहा जब तक मम्मी का हाथ नहीं पकड़ लिया। मेरा परिवार अभी शेर तक पहुँचा था। वो तब भी सो ही रहा था। मैंने मम्मी का हाथ खींचा और तालाब की तरफ ले आया। अब वहां सन्नाटा नहीं था , पंछी बोलने लगे थे , पेड़ के नीचे वो लाश अब भी थी , तालाब में तैरती टाँग गायब थी । बाघ अपने पिंजरे में लौट गया था। हमनें इंतज़ार किया पर वो नहीं दिखा ,पर मैं खुश था.....मैं उससे  मिल चुका था।

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016

कितना पाकिस्तान ?


(मैं सुबह चिमन की दुकान पर पहुंचा या यूँ कहिये  पहुँचा दिया गया। सर के बाल बढ़ गए थे , घर में बाल विकास के खिलाफ प्रस्ताव पास हुआ और चाय पर मम्मी ने friday का हवाला देते हुए मुझे बाल कटवाने का हुक्म दे दिया और मैं पहुँच गया चिमन की दुकान पर । )

"राम राम चिमन भाई" मैंने हाथ उठाते हुए बोला
"हम्म्म्म्म..." मुँह में खैनी की ज्यादा मात्रा होने के कारण वो इतना ही बोल सका।
वो पहले से किसी और की हज़ामत कर रहा था , तो मै अपनी बारी के इंतज़ार में दूकान के बाहर बेंच पर बैठ गया।
"अब की बार दिया जबाब तो भारत ने"  मेरे बगल वाले चचा ने अखबार समेटते हुए कहा ।
किसी ने उनका जवाब नहीं दिया , पर उन्होंने अपने आधे अधूरे दाँतों को पीसते हुए कहना जारी रखा।
"मेरी मानो तो पाकिस्तान पर हमला करने का सही टैम है ये।"
"हम्म्म्म्म....."  फिर से जर्दे ने चिमन को हम्म से ज्यादा कुछ कहने न दिया , पर उम्मीद से परे जाकर चिमन ने जर्दे की पिचकारी को बाहर नाली में सटीकता से फेंका और चेहरे को भोंडे ढंग से टेढ़ा करते हुए बोला " मोदी बनाएगा इनकी फिलम तो, 2017 में पाकिस्तान नी रहेगा , लिखवा लो।"
"अरे भाई इतना आसान थोड़े न है हमला करना , देश को भोत नुकसान होता है ।" मैं अख़बार पढ़ते हुए बोला।
चिमन कुछ देर रुका , फिर बोला "अपने वाले बम्ब गेर दो ना उन पर , जो देश का देश उड़ा देते है।"
"उनके पास अपने से ज्यादा है " मैंने कहा।
"पर उनके तो चीन वाले है ना , साले चले, न चले कोई गारंटी नी" चिमन हँसते हुए बोला।
इस महत्वपूर्ण सामरिक चर्चा में अपनी भागीदारी फीकी होते देख चचा भी मैदान में कूदे और आँखों में चमक लिए कहा।
"परमाणु बम्ब होते है वो , जापान पे फेंके थे न अमरीका ने"
"हां ताऊजी  वही बम्ब,  गेर गूर के नक्की करो..कितना सा तो है पाकिस्तान"
"कितना है पाकिस्तान ?" मैंने अख़बार नीचे रखते हुए पूछा।
"कितना है ?" चचा ने मेरी तरफ देखकर पूछा।
"अरे छोटा ही है ताऊ जी , ज्यादा बड़ा नी है" चिमन ने कहा
मैंने मुस्कुराते हुए चिमन से पूछा " कितना छोटा है , ये तो बता दे"
"हनमानगढ़ से थोडा सा बड़ा ले ले ,बस"
"अच्छा...??" मैंने हंसते हुए कहा
"हनमानगढ़ पलस गंगानगर बरोब्बर पाकिस्तान" चिमन ने ज़ोर देते हुए कहा।
चिमन की इस बात पर मेरी हंसी छूट गयी ।
"अच्छा चल तू हंस रा है । तू बता दे की कितना है पाकिस्तान"
" देख पक्का तो कैसे बताउ , पर लगभग 2 राजस्थान मिलाले। उतना है पाकिस्तान" मैंने हंसी रोकते हुए कहा।
"भाई तेरा इतना पढ़ना लिखना गोबर हो गया फेर तो ,
इतना भी नी पता तेरको ?" चिमन मुस्कुराते हुए बोला।
"शर्त लगाले ?"मैंने हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा।
चिमन कुछ सोचा और बोला "चल होगी शरत , जे तू जीता तो तेरी cutting के पैसे नी लेऊंगा और मालिश भी मुफ़त में और जे मैं जीता तो तू मेरको jio की सिम लाके देगा आज ही।"
मैंने फट से हाँ बोल दी।
"पर पता कैसे चलेगा कौन सही है , और कौन गलत ?" शेव बनवा रहा लड़का धीरे से बोला।
"सामने मास्टर फुसाराम का मकान है , वो अभी school के लिए निकलेगा , निकलते ही धर लेंगे" चचा ने घड़ी देखते हुए कहा।
घडी में 9 बज रहे थे , मास्टर जी के स्कूल जाने का time हो गया था। लड़के की शेव को चिमन ने hold पर रख दिया था , और अब हम चारों की नज़रें मास्टर जी के गेट पर टिकी थी। लगभग 5 मिनट उनके गेट को घूरने के बाद अंततः मास्टर जी प्रकट हुए।
चिमन मास्टर की तरफ जैसे ही लपका , मास्टर जी दुबारा भाग कर घर में घुस गए , क्योंकि चिमन ने उस्तरे को इस तरह पकड़ रखा था मानो आज ही मास्टर जी की टैं बुलवा देगा।
"यार पिछला बकाया अगली हज़ामत में दे दूंगा भाई , इतना गुस्सा किस बात का?" गेट के उस तरफ खड़े मास्टर जी ने डरे स्वर में कहा।
चिमन ने हँसते हुए कहा " अरे मास्टर जी मैं बकाया लेने नहीं आया , एक शरत लगा ली यार। आप दूकान पे आओ।"
मास्टर जी दुकान पर आये और चिमन ने उन्हें पिछ्ले 15 मिनट का इतिहास बता दिया।
"तो अब बताओ मास्टर जी , कौन जीता और कौन हारा" चिमन पुरे विश्वास से बोला।
"  ये बन्दा एकदम सही है की पाकिस्तान लगभग राजस्थान का दुगुना है , तू हार गया चिमन" मास्टर जी ने हँसते हुए कहा और school के लिए चल दिए। अब चिमन भाई सन्न आँखों से सबको देखे , उसे देखकर ऐसा लगा मानो उसके पजामे में सांप घूम रहा हो।
"अब लगेंगे भई लैन में , jio के बिना कैसे जियें" कुछ seconds बाद चिमन कैंची टटोलते हुए बोला , और सब हंसने लगे।





गुरुवार, 6 अक्तूबर 2016

कबूतरमार सदन

थक गया यार by god इधर उधर रहते रहते , अब कुछ permanent जुगाड़ करना पड़ेगा गुरु। एक सफ़ेद पंख क्या निकल आया , ससुरी कबूतरियां  ये कहकर ताना कसती हैं की सफ़ेद पंख वालों की speed कम हो जाती  है , कसम से अपनी मर्दानगी पर ऐसा लाँछन लगने के बाद चुल्लू भर बींठ में डूबने वाली feeling आ जाती है यार  , दोस्तों ने भी साला flat का किराया मांगना शुरू कर दिया। कहाँ जाऊं , कैसे manage करूँ.....??
            आहा.....एक लौंडा है जो काम आ सकता है , हिमांशु नाम है उसका , है तो साला लफंगा सा। खैर, उसने कहा था की कभी कुछ जरुरत हो तो आना।उसको मेरी जरुरत  थी तब , पर अब मुझे है । उसे भी मेरी तरह पंचात करने की बीमारी है , मोहल्ले में क्या हो रहा है , देश में क्या हो रहा है , मोदी कौनसे देश में जा रहा है , राहुल कहाँ खाट लगाए बैठा है। इस पंचाति कीड़े के कारण  वो यह चाहता है की वो भी मेरी तरह आप लोगों से अपने मन की बात कह सके । कैसे allow कर सकता हूँ यार मैं?, और चलो एक पल को मैं मान भी जाऊँ  पर मैं उसके घर कैसे जाऊंगा उससे बात करने ?
ये मेरे कबूतर धर्म के खिलाफ है , क्योंकि उसके पुरखों ने कबूतर जाति पर बड़े जुल्म किये है । ये वो लोग है जिनके नाम से सब कबूतर फर फर कांपते है।
‌                                    ये है खतरनाक "कबूतरमार" । पुराने time में जब हम किसी की confidential file लेकर जा रहे होते थे तो ये बीच रास्ते में ही हमें मार कर file हथिया लिया करते थे ,  बड़े ही निर्दयी लोग होते थे ,जासूसी करना इनका पेशा था । ये कबूतरों का खतरनाक हथियार , उनकी हवा में छोड़ी हुई गीली बींठ भी हवा में ही पकड़ लिया करते थे, हुनर तो देखो सालों का । जब से मैंने उसके घर की name plate पर "कबूतरमार सदन" लिखा देखा , तभी से मैं उस घर में जाने के नाम से भी डरता हूँ। पर ऐसे कब तक चलता...मुझे उस लड़के की जरूरत थी। मैंने हिम्मत बटोरी और उड़ चला। मैं जैसे ही उसके घर के पास पहुंचा , मैं stunned रह गया , अजीब घर था ये। पुरे मोहल्ले में बस यहीं एक घर था जहाँ कबूतरों की बींठ के निशान नहीं थे।फिर अचानक मेरी नज़र घर की boundary wall पर लगी plate पर पड़ी जिस पर लाल रंग में "कबूतरमार सदन" गुदा हुआ था। दोपहर में चमकते उस plate के लाल अक्षर जैसे मुझे डरा रहे थे पर जिन कबूतरों का पेट भरा हो और अमूमन पेट खराब रहता हो , उनसे उलझना खतरे से ख़ाली नहीं है । बस यही सिद्ध करने के लिए मैंने निशाना साधा और लाल अक्षरों को सफ़ेद होते देर न लगी। अक्षरों की दहशत और उनकी चमक टट्टी में मिल गयी थी। मैं कबूतरमार सदन के ठीक सामने वाले घर की मुंडेर पर जा बैठा , और मैंने अपना पिछवाड़ा रगड़ा ही था की क्या देखता हूँ , वो लड़का उस घर से कहीं जाने के लिए निकला। मैंने फिर से उड़ान भरी और उसके पीछे लग गया । वो आगे जाकर बन्ना जी की चाय की थड़ी पर जा बैठा । बन्ना जी से मेरी पहचान थी इसलिए मुझे डरने की जरुरत नहीं थी। मैं उसके पास गया , वो मुझे देखकर थोडा चौंका।
‌"तुम..?" उसने कहा।
"मुझे तुम्हारी help चाहिये" मैंने गुटुर गूं करते हुए कहा।
‌"मुझे भी तुमसे कुछ चाहिये...याद है ना..?"
‌"हाँ याद है...पर एक condition पर"
‌"कैसी condition ??" उसने चाय सुड़कते हुए पूछा।
‌"मेरे रहने का बन्दोबस्त करना होगा"
‌"हो जायेगा..और कुछ?"
‌"कहाँ" मैंने डरते हुए पूछा।
‌"जहाँ मैं रहता हूँ वहीँ , और कहाँ"
‌"पागल उगल है का बे ?....तुम कबूतरमारों का क्या भरोसा ? कब मारो , पकाओ और खा जाओ। मैं नहीं रह सकता तुम्हारे साथ" कहते हुए मैं ऊपर पेड़ पर जा बैठा।
‌"हो तुम कबूतर , पर दिमाग ख़ुदा कसम गधे का रखते हो ।मैं  सिर्फ इनके घर में room किराये पर लेकर रहता हूँ।room के रोशनदान में तुम भी रह लेना,दिक्कत कहाँ हैं ?"उसने चिढ़ते हुए कहा।
‌मैं ख़ुशी से उड़ा और उसके कन्धे पर बैठ गया "अरे वाह भाई , तुम कबूतरमार नहीं हो तो कोई दिक्कत ही नहीं है"
‌"अबे हग मत देना , नई shirt है" वो आँखें तरेरते हुए बोला।
‌"नहीं नहीं भाई....अभी अभी हल्का होके आया हूँ। तो ये तय रहा की जब तुम मुझे  flat का possession दे दोगे... मैं ये महान legacy तुम्हे pass on कर दूंगा.."
‌"possession??" उसने घूरते हुए कहा।
"हाहाहा मजाक कर रा था bro , high fiiiive..."मैंने पंजा उठाते हुए कहा।
‌उसने मुझ पर ध्यान दिए बिना बन्ना जी को चाय के पैसे दिए और चलता बना। खडूस कहीं का...

शनिवार, 1 अक्तूबर 2016

टीवी का चस्का




गलत क्या है इसमें भला ? , हम कबूतर लोग तो टीवी की शान हमेशा से बढ़ाते आये है। तो हम भी टीवी पर आने का शौक रखते है तो क्या बुराई है इसमें बताइये?,पर ये जो किया है तुम इंसानो ने हमारे साथ ये बिल्कुल भी सही नहीं किया, कहे देते है। गैरत ही जवाब दे गयी तुम इंसानो की तो।अब दुनिया के सामने अपना दुखडा न रोये तो कहाँ जाकर सर फोड़े। खैर , आप सबको सुनाते हैं। कलेजे पर हाथ रखकर सुनिएगा ,कहीं भक्क् से बाहर को न निकल आए , हुआ कुछ यूं की हम वो बन्ना जी की थड़ी पर बैठे कबूतरियाँ टाप रहे थे ।तभी क्या देखते है की बन्ना जी के खोखे में रखे टीवी के अंदर एक काला कलूटा बाज़ अपनी हवाई अठखेलियां दिखा रहा था। लोग उसे देखने में इतने मशग़ूल थे की कई लोंडो ने तो गरम चाय से अपनी जीभ जलवा ली। पर उन् बेसुधों को ये नहीं पता था की कबूतर तो नींद में भी बाज़ से तेज़ उड़ सकता है। हमें जलन वलन नहीं हो रही थी बाज़ से , पर युहीं हमने सोचा की अगर ये टेढ़ी चोंच वाला मुआ बाज़ टीवी पर आ सकता है , तो हमारे जैसा एक हैंडसम कबूतर तो छा ही जायेगा। बस यही सोचकर हमने पंखो में हवा भरी और निकल पड़े fly high नामक टीवी चैनल के दफ्तर की ओर । हम जैसे ही वहां पहुंचे तो क्या देखते है की लगभग सभी जानवर और पक्षी वहां ऑडिशन्स के लिए पहुंचे हुए थे। हम गलती से शेर के शिकार क्षेत्र में पहुँच गए , वहां देखा की ज़ेबरा भाई की तो जान पर बनी हुई थी। खूंखार शेर अपनी मोटी तोंद और खून से सनी , बदबू से भभकती दाढ़ी हिलाता हुआ ज़ेबरा भाई के पीछे दौड़ा जा रहा था और उस शेर के पीछे एक वन्य-जीव प्रेमी सा दिखने वाला आदमी कैमरा लेकर लगभग शेर की ही गति से भाग रहा था की तभी एक ब्लैक एंड व्हाइट दाढ़ी वाला बूढ़ा सिगरेट का धुँआ उड़ाते हुए शेर और ज़ेबरा के बीच में क्रमशः कूदा , चिलाया और शेर की कनपट्टी पर एक लाफा रसीद करते हुए बोला - "कट.....कट....कट....feelings कहाँ है शेरू, भूख दिखनी चाहिए नज़रो में।"
                शेर मियां के गाल लाल, गुर्दे उछल कर मुँह तक आ गए थे और ज़ेबरा फर्श पर लेटा , दांत फाड़े हंस रहा था। हम समझ चुके थे की वो इंसान जिसने शेर के गाल लाल किये थे , एक professional director था। फिर हमने ज़रा भी देर नहीं की और अपनी चोंच उसके चरणों में रख दी  "हमें भी स्टार बना दीजिये डायरेक्टर बाबू " -हमनें लगभग गिड़गिड़ाते हुए कहा।

"अरे दूर हटाओ इस घटिया टुच्चे कबूतर को " उसने झिड़कते हुए कहा

" सर अब तो हम आपके चरण-कमल तभी छोड़ेंगे जब आप हमें भी इस तोंदू शेर और बेढंगे ज़ेबरे की तरह स्टार बनाओगे।

"अच्छा अच्छा अब दूर हटो.... और मुन्ना के साथ चले जाओ वो तुम्हे काम समझा देगा" - डायरेक्टर ने एक अधमरे से इंसान जिसका नाम मुन्ना था ,की तरफ इशारा करते हुए कहा।

"पर सर , कबूतरों के ऑडिशन्स तो बंद हो गए है।....इसको कैसे..."

(डायरेक्टर ने बीच में टोकते हुए ,उसके कान में कुछ फुसफुसाया। फिर वो अधमरा इंसान उर्फ़ मुन्ना अपने चेहरे पर लकडबग्घे की सी मुस्कान लिए हमें अपने चंगुल में दबाकर एक ईमारत में ले गया जिस पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था "पक्षी - विभाग"। हालाँकि उसके चंगुल में हमें कुछ अच्छा महसूस नहीं हो रहा था , पर पक्षी विभाग में एंट्री मारते ही हमें मन-लुभावन , कमसिन ,हसीन कबूतरियां दिखाई दी , जिन्हें देख कर हमने अपनी चोंच से छाती में हवा भर कर छाती फैला ली। मुन्ना ने अब हमें चंगुल मुक्त किया और ज़मीन पर कुछ पटकने के अंदाज़ में छोड़ा। हमने खुद को संभाला और उन् कबूतरियों के सामने से गुटर गूं करते हुए आगे निकले तो क्या देखते है की वो दैत्याकार बाज़ , जिसे हमने टीवी पर देखा था ,वो हमारे सामने सीना ताने खड़ा था और हमें उसकी आँखों में भूख और director की भाषा में feelings साफ़ साफ़ दिखाई दे रही थी। हमने आगे से खींचकर जितनी हवा अपनी छाती में भरी थी , उससे कहीं ज्यादा पीछे से निकल गयी और यह घटना पूरी तरह गैर-इरादतन थी। अब शायद ये मेरी उस हवा का प्रकोप था की उस वक़्त उस दानवनुमा बाज़ ने नाक सिकोड़ते हुए वहां से विदा ली और मैंने राहत की साँस ली और इस बार छोड़ी नहीं , ये सोचकर की माना ये बाज़ अब तक यहाँ का राजा था पर इसकी बादशाहत खत्म करने के लिए ही ऊपर वाले ने मुझे यहाँ भेजा है। अब मैं सीधे मुन्ना के पास गया और कहा-" मैं भी उस बाज़ की तरह मशहूर होना चाहता हूँ , ताकि टीवी पर लोग मुझे देखें और मेरी स्पीड को देख कर दंग रह जाये।"

मुन्ना - "उसके लिए तुम्हे बहुत मेहनत की जरुरत है। तुम्हारी 7 दिन की ट्रेनिंग होगी , जिसमे तुम्हे अपनी मैक्सिमम स्पीड तक पहुंचना होगा।ट्रेनिंग के बाद डायरेक्टर साहब तुम पर एक छोटी फ़िल्म बनाएंगे , जिसमे तुम बतौर हीरो लिए जाओगे और एक हसीन कबूतरी तुम्हारी हेरोइन होगी।"

अब मेरा सीना गर्व से फूल गया । शूटिंग तो जब होगी , तब होगी पर मुन्ना ने आज ही मुझे हीरो बना दिया था।

मैंने 7 दिन खूब मेहनत की और आखिरकार वो दिन आ ही गया जिसका मुझे बेसब्री से इंतज़ार था।  make-up दादा मेरे पंख संवार रहे थे और मैं अपनी कबूतरी की नज़रों में नज़रें पिरोये बैठा था की तभी डायरेक्टर सर धमधमाते हुए वहां पहुंचे और चिल्लाते हुए बोले-"मुन्ना scene समझा दो कबूतर बाबू को ?"

मुन्ना-"बस अभी समझा देता हूँ सर"

मुन्ना भागा भागा मेरे पास आया और मुझे सीन बताने लगा

मुन्ना-"देखो भाई , scene काफी आसान सा हैं.... तुम और तुम्हारी कबूतरी एक डाल पर बैठे बतिया रहे हो की अचानक कबूतरी को पहाड़ के पीछे से एक डरावनी आवाज़ सुनायी देती हैं । तुम उस डरावनी आवाज़ का पीछा करते हुए पहाड़ के उस पार जाते हो और लौट कर वापिस नहीं आते हो।

मैंने डरी आवाज़ में पूछा-"मुन्ना भैया पहाड़ के उस पार ऐसा क्या है जो मैं लौट कर नहीं आता"

मुन्ना(कुटिलता से मुस्कुराते हुए)-"अरे मियां कबूतर, ये तो बस एक scene है। इतना मत घबराओ। तुम्हे बस पहाड़ के पार जाना हैं , ठीक है।अब तैयार रहो , डायरेक्टर साहब कभी भी बुला सकते है।

मेरे पंख सहलाते हुए मुन्ना चला जाता है।

मेरा डर के मारे बुरा हाल.....मैं भागा भागा डायरेक्टर बाबू के पास पहुंचा

"पहाड़ के उस तरफ कौन है डायरेक्टर बाबू....बताइये न ?"

"अरे scene है यार.....इतना क्यों घबरा रहे हो। , जाओ shot के लिए तैयार रहो।"

अब मैं चुपचाप जाकर वहां कबूतरी के साथ डाल पर बैठ गया।

मुन्ना कैमरे के सामने खड़ा हुआ और बोला-

"फ़िल्म-कबूतर का शिकार , टेक 1st एंड लास्ट"

हम कुछ समझ पाते इससे पहले डायरेक्टर बाबू की पर्दाफाड़ आवाज़ स्टूडियो में गूँज पड़ी।

"Light , sound , camera........ actionnn"

अब कैमरा मुझे देख रहा था और मैं उस कबूतरी को।

"जानू, क्या तुम्हे पता है उस पहाड़ के पीछे क्या है"-मैंने कबूतरी का कान ढूंढकर उसमे कहा।

तभी एक भयानक सी आवाज़ उस पहाड़ के उस पार से आई और सीन के मुताबिक कबूतरी घबराई हुए बोली।

"Rowdy...... ये आवाज़ कैसी है , मेरा तो दिल बैठा जा रहा है।"

"मेरा भी दिल कुछ बैठ सा रहा है , चलो न कहीं और जाकर बैठते है।"-मैं डरते हुए उससे बोला।

फिर वो धीरे से मेरे नज़दीक आई और लगभग चिपकते हुए बोली-"ये क्या बोल रहे हो , अपना dailogue बोलो।"

फिर न जाने क्या हुआ , जैसे ही उसका आधा किलो का मुलायम बदन मेरे पौन किलो गठीले बदन से टकराया। मुझमे rowdy घुस गया और वहीँ से मेरा बुरा वक़्त शुरू हो गया।

"तुम घबराओ मत जानू , जिसने भी तुम्हे डराने की ज़ुर्रत की है। मैं उसका चोंच काट कर तुम्हारे पंजो में रखूँगा।"-मैं अपने शरीर को फुलाते हुए बोला।

फिर मैंने डाली पर अपनी चोंच घीसी और उड़ चला उस पहाड़ की तरफ ।

 कबूतरी की छुअन की खुमारी अब भी नहीं उतरी थी । मैं उड़ा चला जा रहा था और मैं कब पहाड़ के उस पार आ गया मुझे पता ही नहीं चला। मैं एकदम rowdy के किरदार में डूब गया था। मैंने पहाड़ के उस तरफ जाकर ललकारा-

"किसकी इतनी हिम्मत जो 2 प्यार करने वालो के बीच अपनी चोंच घुसा रहा है , माँ के दाने खाये है तो सामने आ।"

तभी पूरा आस्मां पंखो की फड़फड़ाहट से गुंजायमान हो गया , सभी पक्षी अपने अपने घोंसलों में घुस गए, फ़िज़ा में दहशत पसर गयी और वही भयानक आवाज़ फिर से निकालते हुए वही खतरनाक बाज़ मुझे , मेरी तरफ आता दिखायी पड़ा। उसकी रफ़्तार बादलों को चीर रही थी और उसकी चोंच में भाले सा पैनापन था , उसके नुकीले पंजो के 2 इंच लंबे नाखूनों में फंसी चूहे की पूँछ उस बाज़ के मिलनसार होने को सिरे से खारिज कर रही थी। मेरे होश फाख्ता हो गए  , बाज़ ने मुझ पर लगभग झपटा मार ही दिया था कि अचानक मैंने u-turn मारा और जान बचाने की और मौत को हराने की मेरी दौड़ शुरू हो गयी । वो मुआ मेरे इतने करीब था कि मैं उसके चौड़े डैनों से आती हवा महसूस कर पा रहा था और यक़ीनन वो भी महसूस कर रहा था वो हवा जो डर के मारे मैं छोड़ रहा था , मैं हवा छोड़ता गया और वो पिछड़ता गया। पर हवा कब तक साथ देती भला। धीरे धीरे खत्म होने लगी और बाज़ भी साला पक्की नाक का था , कमीने की चोंच टेढ़ी हो गयी थी बदबू के मारे पर हार मानने को तैयार न था। हमनें भी कोई कच्चे दाने नहीं खाये थे। मैंने हवा के आखिरी वार से उसे चित करने का खुद से comittment कर लिया था। वो आखिरी गैस का गुब्बार मैं उसकी चोंच पर फोड़ना चाहता था , मैंने पूरा ज़ोर लगाया , और धकेल दिया बाहर जो कुछ भी मेरे अंदर था। माहोल में गीलापन फ़ैल गया , मेरे अंदर के तरल ने मेरे अंदर की गैस को पछाड़ कर खुले आसमान में स्वछन्द उड़ने का जैसे license पा लिया था। पर ये क्या.....मेरा निशाना चूक गया और मैंने देखा की मेरी बींठ उडी जा रही थी मस्त गगन में एक कटी पतंग की तरह । बाज़ की उड़ान परवान पर थी और मेरी नज़र मेरी बींठ पर । वो बेतरतीब तरीके से इधर उधर फ़ैल गयी थी और उसका एक बड़ा हिस्सा डायरेक्टर बाबू की तरफ बढ़ा चला जा रहा था , इससे पहले कि डायरेक्टर बाबू सम्भल पाते मेरे आखिरी वार ने अपना काम कर दिया और उनका चेहरा मेरी बींठ से पुत्त गया ।

मुझे उनकी चीख सुनायी दी "pack uppppppp".

और उनके चिलाते ही उस कातिल बाज़ ने अचानक u turn मार लिया और मेरा पीछा छोड़ दिया। पर मौत का खौफ इस कदर रम गया था मेरे पंखों में कि वो नहीं रुके और मैंने बन्ना जी की थड़ी पर पहुँच कर ही चैन की गुटर गूं की। वहां बैठे लोंडे उसी बाज़ के हवाई करतब टीवी पर देख तालियां बजा रहे थे। अब मैंने टीवी के चस्के से तौबा कर ली। वैसे मेरी हवाई कलाबाजियां भी कुछ कम न थी....मानना पड़ेगा आपको।